Friday 27 November 2015

आँख की मोती



देखो कैसे संभाला हैं मैंने 
ईन मोतीयों जैसे 
आंसूँओं को 
ना पलके झपकाई मैंने 
ना गिरने दी 
तुम्हारे दिए ईन 
अनमोल तोफो को !
सागर की सीने में दफ़्न 
जैसे रहता हैं खज़ाना कोई 
वैसे ही मेरे रूह मैं छिपा 
तुम्हारा ही धुंदला सा 
परछाई कोई !
रेत की तरहा फिसलती जाये 
मुट्ठी में समाई सांसे मेरी 
अब इससे मैं कैसे संभालू 
चल दी जो वो साथ तेरी  !
सफर बोहोत लम्बी  नहीं 
न ही बड़ी लम्बी रस्ते हैं 
तुम्हारे आत्मा से 
मेरी आत्मा की दुरी 
बस एक हाथ का हैं
दो कदम तुम चलना 
चार चलूंगी मैं भी 
आँख से मोती टपकने से पहले 
गले मिलेंगे हम भी !


~मंजरी ~


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