Monday 25 January 2016

बरसात


याद हैं तुम्हे, एक दिन जब 
अचानक बारिश आई थी 
हमारे बंध खिरकी के पीछे.... 
और मैं, तुम्हारे कंधे पे 
रख के सर, उसकी आवाज़ 
सुन रही थी
छमछम , रिमझिम 
कितनी सुरीली थी वह बरसात !
वह पानी के छपाक 
वह तुम्हारे हाथो में 
फसी मेरी हाथ 
उस दिन बरसात 
सिर्फ बहार नहीं 
मेरी अंदर भी हुई थी... 
प्रेम की बूंदाबांदी में 
कम्पित ह्रदय हमारी... 
तुम्हारा मेरा बिन बोले बोलना 
उस दिन आसमान पिघल के 
मेरी आँखों से बह गई  थी 
हाँ , उस भूले हुए तारीख 
महीना भी याद कहा ?
पर बारिश के साथ 
तुम और मैं 
कुछ देर के लिए जिए जरूर  थे !

~मंजरी ~



No comments:

Post a Comment