Saturday, 21 November 2015

तुम हो , मैं हु और हमारी आसमान हो

चलो छोड़ दे यह दुनिया 
किसीको भी नहीं बतलाएं 
हम चुपचाप चले जाये 
वहा, जहा धरती ख़त्म होती हो 
और स्वर्ग  जहा से होती हो शुरू !

किसी नील पहाड़ी की चोटी पर 
छोटी सी एक घर हो 
जहा तक आँख फैले 
बस फूलों की बहार हो 
तुम हो , मैं हु 
और हमारी आसमान हो !
आँगन में एक झूला हो 
उसमें झूले सपने हमारे 
बरसात हो जब भी 
छत्री , बस एक ही हो 
सर्दी हो… बर्फ हो 
जमी हुई ख्वाइशें हो 
तुम हो , मैं हु 
और हमारी आसमान हो !
निचे उतरु , तो जंगल मिले 
पाइन की ख़ुश्बू हो 
मेरी अरमानों  को सीने में लिए 
पंख फैलाती बदल हो 
तुम हो , मैं हु 
और हमारी आसमान हो !
देर तक रातों को 
तारो की  महफ़िल हो 
चाँद खिले , खिरकी पर 
जहा तुम खड़े हो 
तुम हो , मैं हु 
और हमारी आसमान हो !

~मंजरी ~ 



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